Astrology

Monday, January 11, 2010

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व

‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’। हे सूर्य ! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो--- । प्रकाश के पुंज सूर्य का मकर राशि में परिवर्तन अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर माना जाता है। सूर्य को समर्पित यह पर्व (मकर संक्रान्ति) पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास (मध्य जनवरी) में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता हैं। मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है। इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते है। मकर संक्रान्ति को तमिलनाडु में पोंगल उत्सव के रूप में मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे सिर्फ संक्रान्ति कहते हैं, हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है तो इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। कुल मिलाकर पूरे भारतवर्ष अलग-अलग रूप में इस दिन को बहुत ही उत्सव से मनाया जाता है। हमारे लगभग सभी त्यौहार किसी न किसी विशेष कथा पर आधारित होते है, परन्तु यह एक ऐसा पर्व है जो खगोलीय घटना पर आधारित है। हमने माह को दो भागों में बांटा- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है- पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दोनो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है। इस प्रकार वर्ष पर्यन्त चलने वाले सभी तीज-त्यौहार विक्रम संवत्‌ और भारतीय पंचाग के अनुसार तिथियों के हिसाब से मनाये जाते है लेकिन मकर संक्रान्ति भारत का एक मात्र ऐसा पर्व है जो हर साल अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के यानी 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है। किन्तु इस बार यह विचित्र संयोग हो रहा है कि इस बार मकर संक्रान्ति बजाय 14 जनवरी के 15 जनवरी को आएगी। इस वर्ष सूर्य 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करेगा यानी इस बार मकर संक्रान्ति का त्योहार 13-14 की बजाय 15 जनवरी को पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि कालगणना के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए हर साल 55 विकला या लगभग 52 साल में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है। इसको हम ऐसे भी समझ सकते है कि आज से 1700 साल पहले मकर संक्रान्ति 22 दिसम्बर को आया था। या हूं कहे कि सन्‌ 1927 से पहले मकर संक्रान्ति 13 जनवरी को हुआ करती थी। इसके बाद 20वीं शताब्दी तक मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को आने लगी। तथा इस बार मकर संक्रान्ति 15 जनवरी को आएगी। और हो सकता है कि आने वाले समय में मकर संक्रान्ति 16 जनवरी को आएगी। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करता हैं, किन्तु कर्क एवं मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं और सर्दी का मौसम रहता हैं, किन्तु मकर संक्रांन्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से राते छोटी तथा दिन बड़े होने लगते है एवं इसके साथ-साथ सर्दी का प्रकोप भी कम होने लगता है। मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व यह है कि इस दिन पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसी कारणवाश इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। इसीलिए कहा जाता है- ‘सारे तीरथ बार-बार लेकिन गंगा सागर एक बार।’ इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व इसलिए भी है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता। (श्लोक 24-25) मकर संक्रान्ति के दिन भारतवर्ष में लोग खाद्यान्न विशेष के रूप में तिल, गुड़, मूंग, खिचड़ी आदि पदार्थों का सेवन करते है। तिल के सेवन से शीत से रक्षा होती है। तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी। तिलभुक्‌ तिलदाता च षट्‌ितला: पापनाशना:।। अर्थात्‌ तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रान्ति का पुण्य फल प्राप्त होता है। हरियाणा और पंजाब में इस दिन रात्रि होते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों की सब्जि का भी लुत्फ उठाया जाता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिन मनाया जाता है। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य पोंगल, तृतीय दिन मटटू-पोंगल तथा चौथे दिन कन्या पोंगल। इस दौरान लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्‌टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते है। यह खीर सूर्य को प्रसाद के रूप में चढाई जाती है।

Tuesday, November 17, 2009

कौनसा रत्न पहने ?

कौनसा रत्न पहने ?

वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह सवाल उठता है हमें कौनसा रत्न धारण करना चाहिए ? साथ ही यह भी उत्सुकता रहती है कि जो रत्न धारण किया है वह सही है या गलत है। आज हम जिस भौतिक युग में जीवनयापन कर रहे है वहां हम रत्न, ज्योतिष या ऐसे ही साधनों के द्वारा अपने रोजमर्रा के कार्यों में फायदा प्राप्त कर सकते है। भाग्योदय में भी रत्नों योगदान रहता है। अनुकुल रत्न पहनने से ग्रह बली होते है तथा प्रतिकुल ग्रहों से बचाव होता है। रत्न पहनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि रत्न हमारे शरीर को स्पर्श होना चाहिए (केवल हीरे को छोड़कर)। रत्न को हम लॉकेट या अंगूठी में जड़वाकर पहन सकते है। प्रत्येक रत्न के लिए हाथों की पृथ्क-पृथ्क अंगुलियों का उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार सामान्यतया पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बाएं हाथ में रत्न धारण करना चाहिए। रत्न को धारण करते समय यह देखना चाहिए कि चन्द्रमा पूर्ण होना चाहिए। समय, वार एवं नक्षत्र रत्न के अनुकूल हों।
माणिक्य - सूर्य ग्रह हेतु, अनामिका अंगूली, सोमवार
मोती - चंद्र ग्रह हेतु, अनामिका अंगूली, सोमवार
मूंगा - मंगल ग्रह हेतु, बीच की अंगूली, मंगलवार
पन्ना - बुध ग्रह हेतु, छोटी अंगूली, बुधवार
पुखराज - गुरू ग्रह हेतु, प्रथम अंगूली, गुरूवार
हीरा - शुक्र ग्रह हेतु, छोटी अंगूली, शुक्रवार
नीलम - शनि ग्रह हेतु, तर्जनी अंगूली, शनिवार
गोमेद - राहु ग्रह हेतु,
लहसुनिया -केतु ग्रह

Thursday, October 15, 2009

जन्म राशि या प्रचलित नाम राशि में से किस राशि की प्रधानता -

जन्म राशि या प्रचलित नाम राशि में से किस राशि की प्रधानता - काफी लोगों के मन में यह दुविधा रहती है कि मेरा जन्म का नाम तो यह पर मैने दूसरा नाम रख लिया अब मै किस नाम अक्षर की राशि को देखू या किस नाम अक्षर के द्वारा अपना कार्य करू। हमें भविष्य में ध्यान रखना चाहिए कि जो अक्षर जन्म समय पर आया हो उसी पर नाम रखे। हम अगर घर में हवन, पूजा, संकल्प आदि कर रहे है तो उस समय हमारा जन्म अक्षर राशि का उपयोग लिया जाएगा। उसी प्रकार अगर हम नौकरी, व्यवसाय, परीक्षा, गाड़ी, पोपर्टी या अन्य किसी प्रकार का कार्य कर रहे है तो उस दौरान हमारा प्रचलित नाम (जिस नाम से हम कार्य करेगें) राशि को हम प्रधानता देगें।

वास्तु के उपयोग से परीक्षाओं में अपने आपको कैसे तैयार रखे -

अब परीक्षाओं का समय नजदीक आ रहा है। वैसे भी सर्दी का मौसम पढ़ने के लिए उचित माना गया है। हमें वर्ष पर्यन्त पढ़ना चाहिए लेकिन पारीक्षाएं जैसे-जैसे नजदीक आती है हम उतना ही सर्तक होने लगते है, और होना भी चाहिए। हम जितना पढ़ेंगें उतनी ही सफलता प्राप्त करेगें लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर हम अपनी सफलता सुनिश्चित अवश्य कर सकते है। जैसे कि हम वास्तु के कुछ नियमों का पालन करके ज्यादा पढ़ने पर भी उचित अंक प्राप्त न होना या पढ़ाई में मन कम लगना आदि समस्याओं का निवारण कर सकते है।जब हम अध्ययन करते है तो हमारा मुंह पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। पढ़ने की टेबल के सामने सरस्वती यंत्र, सरस्वती माता का चित्र या स्वास्तिक का चित्र लगा होना चाहिए। इससे पढ़ने में स्थिरता आएगी।अध्ययन कक्ष ज्यादा बड़ा न हो और न ही उसमें बहुत सारी वस्तुएं होनी चाहिए। इससे मन में अस्थिरता नहीं रहती है।अध्ययन कक्ष में सफेद, पीला या स्काई कलर अच्छा रहता है।अध्ययन करने से पहले एक बार ‘‘ऊॅ की ध्वनी अवश्य बाले इससे मन में शुद्धता रहेगी।

दीपावली - कैसे करें लक्ष्मी का स्वागत

दीपावली माता लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। हमें भी मॉ लक्ष्मी का तन-मन से स्वागत करकें आर्शिवाद प्राप्त करना है ताकि हम जीवन को सुखमय बना सके। मॉ लक्ष्मी के पूजन हेतु सर्वप्रथम पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़के। उस स्थान पर पूरे परिवार सहित स्नान करके, साफ-सुथरे कपड़े पहन कर मॉ लक्ष्मी जी, मॉ सरस्वती जी एवं गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। आवश्यक पूजन सामग्री पास में रखें। पूजन के दौरान सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें उसके बाद सरस्वती जी का तथा लक्ष्मीजी का पूजन करें। लक्ष्मी जी के पूजन के दौरान बेलपत्र व कमल का फूल चढावें। इस पूजा के दौरान सोने के आभूषण या सिक्के का अधिक महत्व है। इन सिक्कों को आप पूजा के दौरान वहां रखें। दीपावली पूजन के दौरान भगवान कुबेर का पूजन अवश्य करें। इससे पूरे वर्ष अन्न-धन भरा रहेगा। सुख शांति से विधि विधान द्वारा पूजा आरम्भ करें -पूजा करने का तरीका - सर्वप्रथम भूमि को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। तत्‌पश्चात अपने शरीर पर जल छिंटे छिड़क कर स्वयं को शुद्व करें। चांदी की थाली या अन्य थाली में कुमकुम से स्वातिक बनावें। उस पर सुपारी एवं मोली से बने गणेश जी विराजमान करें। गणेश जी पूजा करें। इन सब में मंत्रोच्चारण करने से पूजा सफल मानी जाती है। सर्वप्रथम गणेशजी के पानी से अभिषेक (जल छिड़के) करें। फिर कुमकुम एवं चावल चढ़ावें, फूल, पुष्पमाला अर्पित करें, पान, लौंग, इलायची, प्रसाद चढ़ावे, इत्र, धूप, बती करें, दक्षिणा(रूपये) चढावें। और हाथ जोड़कर गणेशजी से आर्शीवाद प्राप्त करें। सरस्वती पूजा हेतु मॉ सरस्वती जी का ऊपर वर्णित अनुसार पूजन करें। इस दिन नया पेन (कलम), कागज का पूजन करें। व्यापारी बहीखाता आदि का पूजन करें। मॉ लक्ष्मी जी का पूजन भी ऊपर वर्णित अनुसार करें। इस दिन प्रसाद में फूलिया, काचर, बेर, मेल-मालिया (शक्कर के बने होते), मतीरा आदि अवश्य चढ़ाया जाता है। एक बड़े दीपक में अखण्ड जोत रातभर जलाई जाती है। भगवान कुबेर जी हेतु उनका यंत्र बनाकर ऊपर वर्णित अनुसार पूजन करें। घर के सभी छोटे सदस्य अपनो से बड़े लोगों के पैर छूकर आर्शीवाद प्राप्त करें।

Sunday, October 4, 2009

अलग-अलग राशियों पर शनि का प्रभाव

मेष - मेष राशि के पिछला समय कष्टकारक रहा। परन्तु आने वाला समय महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आएगा तथा राहत मिलेगी।

वृष - वृष राशि वालों को मानसिक तथा पारिवारिक कष्टों से राहत महसूस होगी। विद्यार्थियों को सफलता मिलेगी।

मिथुन - मिथुन राशि वालों के लिए शनि शुभ रहेगा। वाहन या फिक्स पोपर्टी खरीदने के संयोग बनेगें। स्वास्थ्य पर कुछ बुरा प्रभाव रहेगा।

कर्क - कर्क राशि वालों के लिए कष्टकारक समय समाप्त होगा। आर्थिक तथा मानसिक स्वास्थ्य लाभ होगा। कार्यक्षेत्र में उन्नति के अवसर प्राप्त होगें।

सिंह - सिंह राशि वालों के लिए शुभ समय की शुरूआत हुई है। कार्यक्षेत्र हेतु नये स्रोत मिलेगें। चहुमुंखी लाभ वाली स्थिति बनती है।

कन्या - कन्या राशि में साढे साती पिछले ढाई वर्षों से चल रही है यह समय कष्टकारक रहा। अब आगे का समय अच्छा रहेगा तथा कार्यक्षेत्र के नये रास्ते खुलेगें। रोगों से भी छुटकारा प्राप्त होगा।

तुला - तुला राशि वालों के लिए कुछ मानसिक तनाव हो सकता है लेकिन इसके साथ-साथ समय अंतराल अच्छा समय रहेगा। वाहन तथा पोपर्टी खरीदने के योग बनेगें।

वृश्चिक - वृश्चिक राशि वालों के लिए लाभ का समय है। विद्यार्थियों को अच्छे अवसर प्राप्त होगें। स्वास्थ्य का थोड़ा ध्यान रखे।

धनु - धनु राशि वालों के लिए समय थोड़ा कष्ट कारक रह सकता है। स्थान परिवर्तन के योग बनते है। विदेश यात्राएं हो सकती है।

मकर - मकर राशि वालों के लिए मिश्रित समय रहेगा। धनलाभ होगा तो शत्रु भी खड़े हो सकते है। कार्यक्षेत्र में अच्छा प्रभाव रहेगा।

कुंभ - कुंभ राशि वालों के लिए शनि का ढैया मतभेद उत्पन्न कर सकता है। मानसिक तनाव रहेगा। स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
मीन - मीन राशि वालों के लिए समय बहुत अच्छा है। उन्नति एवं धनकारक रहेगा। यात्राएं होगी। पदोन्नति की संभावनाएं है।